जिसने मिलेनियल्स के बचपन में रंग भरे
जिसने मिलेनियल्स के बचपन में रंग भरे आज सुबह हुई थी जैसे होती है सुबह रोज़ मेट्रो भी अपनी रफ्तार में थी पर मोबाइल की छोटी-सी स्क्रीन पर एक खबर चमकी उस खबर ने सहसा गुजरते समय को थाम लिया जैसे घड़ी की टिक-टिक एक पल को भूल गई हो वो चला गया जिसने हमारे बचपन में चटख रंग भरे थे , जब बचपन रंगों से भरा होता है , तो वह सिर्फ़ बचपन नहीं रहता वह तो जादू हो जाता है। सहसा महसूस हुआ , आँखों में नमी थी मेट्रो की खिड़की से गुजरता शहर धुंधला रहा था शायद मेरी उदासी शहर में उतर आई थी और फिर यादें लौट आईं , जैसे कोई पुरानी धुन बज उठी हो रविवार की वो सुबहें जब दूरदर्शन—उस दौर का एकमात्र टीवी चैनल होता था जब सफ़ेद-श्याम पर्दे पर ‘चल मेरी लूना’ की चुलबुली आवाज़ गूँजती थी तब हम बच्चे ‘साइकिल की सैर’ सपने में देखते थे । ‘ मिले सुर मेरा तुम्हारा’ तो जैसे जादू बुनता था हम गुनगुनाते थे , कई-कई बार बेतरह जैसे कोई अनकहा नेशनल एंथम हो हमारा तब कौन सोचता था कि इनको रचने वाला एक आदमी है ? वह आदमी , जो हमारे बच...