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अपने पसंदीदा विषय के काम को दो सौ प्रतिशत देना चाहिए - अजंता

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   credit - desicreative (अजंता गुहाठाकुरता प्रकाशन उद्योग का एक सुपरिचित नाम हैं। इस क्षेत्र में ये पच्चीस सालों से अधिक समय से काम करती आ रही हैं। ये एक इलस्ट्रेटर एवं प्रशिक्षित पेंटर हैं। बाल साहित्य के लिए इनके कार्य उल्लेखनीय हैं। इन्होंने चिल्ड्रेन्स बुक ट्रस्ट , पेंगुइन बुक्स इंडिया (पफिन एंड लेडीबर्ड बुक्स) और इटरनल गैंगेज के साथ व्यावसायिक रूप से पूर्णकालिक काम किया। इनके चित्र और डिज़ाइन भारत के कई अन्य प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित विभिन्न पुस्तकों में दिखाई देते हैं। इनके कामों को राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है एवं खूब सराहा गया है। एक पाठक के रूप में इनके कामों को विगत कई वर्षों से देखता पढ़ता रहा हूँ। चिल्ड्रन बुक इलस्ट्रेशन में काम करने वाले अनेक इलस्ट्रेटर्स अपनी स्टाइल डेवेलप करते हैं और उसी स्टाइल को पकड़ते हुए आगे के काम करते चले जाते हैं। लेकिन अजंता जी इस मामले में अन्य  इलस्ट्रेटर्स से अलग नजर आती हैं। उन्होंने अपने इलस्ट्रेशन की कोई फिक्स्ड स्टाइल नहीं बनाई है।  उन्होंने अलग-अलग तरह के हरसंभव प्रयोग अपने चित्रण में किए हैं। वे अपने काम में ख

निर्मल का शहर और मॉल रोड की लाइब्रेरी

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जिस शहर में जाता हूँ, वहाँ की पब्लिक लाइब्रेरी मेरी साथी बनती हैं। घंटों किताबें तलाशना, पढ़ना, नोट्स लेना फिर उन अनुभवों को दूसरों से साझा करना या लिखना। ये कुछ गतिविधियाँ अन्य जरूरी कामों के साथ मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन जाती हैं। मैंने राजस्थान के अलग-अलग शहरों में 6 साल गुजारे हैं। वे 6 साल मेरे लिए पढ़ने और लिखने के लिहाज से सबसे उर्वर सालों में से रहे। वहाँ की लाइब्रेरिज से कुछ अलग सा रिश्ता जुड़ा । बाद के वर्षों में भी राजस्थान नियमित रूप से जाता रहा हूँ। हालाँकि ऐसे तालमेल अन्य राज्यों के शहरों के साथ अभी तक नहीं बिठा पाया। दिल्ली और उसके आसपास रहते हुए चार साल बीत गए।  पर अब तक  यहाँ किसी तरह के प्रयास नहीं कर पाया। ‘किताबें मेरी ‘दूसरी जिंदगी’ रही हैं। मेरी अपनी जिंदगी के समानांतर चलती हुई। किसी अच्छी कहानी या उपन्यास पढ़ने के बाद मुझे बाहर की दुनिया कुछ वैसी ही दिखाई देती थी जैसे बहुत बारिश होने के बाद बादल छँटते ही शिमला के पहाड़ दिखाई देते थे। बाद में मैंने पाया कि किताबें मन का शोक, दिल का डर या अभाव की हूक कम नहीं करती, सिर्फ सबकी आँख बचाकर चुपके से दुखते सिर के नीचे सिरहा