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सबरंग खिलौने

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(International Day of Play विशेष) क्या बच्चे सचमुच खेल नहीं रहे?  क्या उनके खेलने की जगहें सिकुड़ती जा रही हैं? और वे आजकल कौन से खेल खेलना पसंद करते हैं? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो हमें सोचने पर मजबूर करते हैं। पहली नज़र में ऐसा लग सकता है कि खेलने की जगहें कम होने और बच्चों के लिए खेल के अवसर घटने की समस्या सिर्फ बड़े शहरों और महानगरों तक ही सीमित है। यहाँ बेतरतीब निर्माण के कारण बच्चों के खेलने की जगहें सिकुड़ती जा रही हैं, और एकल परिवारों की बढ़ती संख्या भी स्वाभाविक रूप से खेलने के मौकों को कम कर रही है। माता-पिता की व्यस्तता और बच्चों को  हद तक प्रोग्राम्ड  गतिविधियों में शामिल करने का बढ़ता चलन भी उनके अनौपचारिक खेल के समय को छीन रहा है। हालांकि, यह सिर्फ शहरी क्षेत्रों की कहानी नहीं है; ग्रामीण इलाकों का हाल भी कुछ ऐसा ही है। इसकी एक बड़ी वजह बच्चों के पारंपरिक खेलों की कड़ी का कमजोर पड़ना या टूट जाना है, जिससे ग्रामीण परिवेश में भी बच्चों के पास खेलने के उतने सहज अवसर नहीं बचे हैं, जितने पहले हुआ करते थे। हमारे देश में पारंपरिक खेलों की एक समृद्ध विरासत रही ह...