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बाल साहित्य में पैरोडी और तज़मीन — नकल और सृजन का संतुलन

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बचपन में एक फिल्म देखी थी ‘ अमानुष ’ । उत्तम कुमार को ब्लैक एंड व्ह्वाइट स्क्रीन पर पहली बार देखा था । फिल्म की कहानी क्या थी अब याद नहीं । शायद उस समय भी समझ तो नहीं आई थी । लेकिन एक दो गाने याद रहे । उसकी दो बड़ी वजहें थीं , पहला तो रेडियो पर ‘ दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा ’ अक्सर सुनने को मिल जाता था । दूसरी वजह इस गीत की पैरोडी , जिसे बड़ों की किसी पत्रिका में मैंने उस वक्त पढ़ा था । पढ़ा क्या था , अपने घर में बहुतों को कई बार पढ़कर सुनाया भी था । ‘ फिल्मी गीतों की पैरोडी ’ के अंतर्गत वह गीत छपा था , और कुछ ऐसा था ,   दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा बर्बादी की तरफ़ ऐसा मोड़ा      एक भले मानुष को बन मानुष बना के छोड़ा । जितनी बार मैं पढ़ता , बनमानुष शब्द पर पहुंचते ही मेरी हंसी छूट जाती। हमउम्र लोगों (तब उम्र आठ के आसपास थी) की भी हंसी छूटती , वे पत्रिका लेकर उन पंक्तियों को बार-बार पढ़ते और हंसते। लेकिन बड़े लोगों की इस पर कोई खास प्रतिक्रिया मिली हो , या कोई ठहाके वाली हंसी दर्ज की हुई हो , ऐसा याद नहीं. लेकिन उनके टालने वाले भाव जरूर थे , या इस बात की कोशिश कि थोड़...

नाटक गाँव के नाम ‘नरेंद्रपुर’ है!

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  संस्मरण    नाटक गाँव के नाम ‘नरेंद्रपुर’ है! (नाच उपन्यास की पूर्व पीठिका) (नाच किशोर पाठकों के लिये लिखा गया उपन्यास है , जो इस महीने एकलव्य , भोपाल से प्रकाशित हुआ है। तकरीबन दस साल तक इसपर काम करता रहा। इन वर्षों में इसके अलग-अलग ड्राफ्ट तैयार हुए। पाठकों के सुझाव भी मिले। सहयोग के लिये सभी का शुक्रिया।   वैसे इसके लेखन प्रक्रिया की शुरुआत वर्ष 2016 के आरम्भ में हुई थी। जब मुझे एक कथा शिविर में भाग लेने का मौका मिला था। जिसके अनुभवों को आधार बनाकर एक संस्मरण भी लिखा था , जो कथा शिविर की स्मारिका में साथी कथाकारों के साथ प्रकाशित भी हुआ था यहाँ प्रस्तुत है वह संस्मरण ।)     उस शाम बहुत ही असमंजस की सी स्थिति थी। ऑफिस से लौटकर मैं मेल चेक कर रहा था। एक मेल सिवान में आयोजित होने वाले ‘कथा शिविर’ से संबंधित था। शिविर में शामिल होने के लिए सहमति मांगी गई थी। मुझसे जैसे एकदम नए लेखक के लिए इस तरह का आयोजन एक मौके जैसा था- कुछ सीखने , कुछ समझने और कुछ गुनने बुनने का। बाद में मेल में स्थान का नाम भी था- जीरादेई प्रखंड का ‘नरेंद्रपुर गाँव’। जीरादेई का नाम ...

'इल्म' में प्रोफेसर कृष्ण कुमार का व्याख्यान

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  (19 जुलाई 2025 को शिव नाडर स्कूल, नोएडा ने 'Envisioning libraries as transformative space' विषय पर एक वार्षिक लाइब्रेरी सम्मेलन का आयोजन किया था -  ILM (इल्म). इस आयोजन में मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर कृष्ण कुमार को सुनने का मौका मिला था. यहाँ प्रस्तुत है उनके मूल अंग्रेजी में दिये गए भाषण का सम्पादित एवं हिंदी में अनुदित अंश . कुछ तकनीकी कारणों से भाषण के शुरुआती हिस्से  को इस टेक्स्ट में शामिल नहीं किया जा सका है. पढ़ने में सुविधा हो इसलिए इस भाषण को अलग-अलग खण्डों में प्रस्तुत किया गया है.)  एक स्कूल लाइब्रेरियन को एकदम नए सिरे से काम शुरू करना होता है। उसे सब कुछ जानना पड़ता है कि किस फील्ड में कौन सी किताबें छप रही हैं , कौन सी अच्छी हैं और खरीदने लायक हैं। आजकल जब किताबों का बाजार कभी बहुत भरा होता है तो कभी खाली , तब बच्चों के लिए सही किताबें ढूंढना बहुत मुश्किल हो जाता है। अगर हम पश्चिमी देशों को देखें , खासकर ब्रिटेन और अमेरिका को , तो वहाँ 19 वीं सदी के आखिर से ही बच्चों के लिए बहुत अच्छी किताबें लिखी जा रही हैं। मैं एक बार इंग्लैंड के एक स्कूल ...